Friday, October 25, 2013

हिंदुस्तानी मुस्लिम समाज में वसाएलसमाजी, मआशी और सक़ाफ़तीकी ग़ैर-मसावी तक़सीम [unequal distribution] है. इन वसाएल का असमान वितरणजो दर हक़ीक़त एक स्ट्रकचरल प्रॉबलम हैही समाजी ग़ैर बराबरी को जनम व फ़रोग़ देता है. माहिरे समाजियात पीएरे बोर्द्यू (Pierre Bourdieu) का मानना है कि पावर और प्रिविलेज वासएल [resources] की ग़ैर-मसावी तक़सीम का नतीजा और सबब दोनों हैं. रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में सरमाये के ये तीन इक़्सामसमाजी, मआशी और सक़ाफ़तीका इंट्रैकशन ही समाज में पावर डिस्ट्रिब्यूशन को तय करता है. समाज का जो तबक़ा इन वसाएल पर क़ाबिज़ होता है, पावर और प्रिविलेज उसी तबक़े की मीरास होती है. अब चूँकि पावर और प्रिविलेज पर क़ब्ज़े का अमल दरअस्ल ज़ीरो सम गेम (zero-sum game) है चुनांचे यह समाज में ग़ैर बराबरी और अदम मसावात को पैदा करेगा ही.


तारीख़ी एतबार से, तब्क़-ए-अशराफ़ का सरमाये तीनों इक़्साम पर पूरा क़ब्ज़ा रहा है जिसके नतीजे में पसमान्दा हमेशा से ग़ैर बराबरी का सामना करते रहे हैं. अब ज़रूरत इस बात की है पावर और प्रिविलेज के ज़ीरो सम गेम को नॉन-ज़ीरो सम गेम में बदला जाए जिसके लिए ज़रूरी है की वसाएल का मसावी बटवारा. और इस मसावी बटवारे की पहली शर्त है दाख़िली जम्हूरियत [internal democratization].

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