तमाम हथकण्डों के बीच, दूसरे धार्मिक समुदाय विशेषतः अल्पसंख्यक समुदाय के बारे
में झूठा प्रचार करना फ़ासीवादियों तथा दक्षिणपंथी-सांप्रदायिकों का पुराना
हथकण्डा रहा है। इसी संदर्भ में, हाल ही में ‘लव जिहाद’ का एक नया हौव्वा खड़ा
किया जा रहा है। इस मिथ्याप्रचार के अनुसार मुसलमान हिन्दू नवयुवतियों को प्यार के
जाल में फँसाकर उनका धर्मांतरण तो कराते ही है साथ में अपनी आबादी भी बढ़ाते हैं।
पिछले कई सालों से विश्व हिन्दू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, हिन्दू जन
जागरण समिति आदि संगठन इस अफ़वाह-तंत्र को विकसित करने के सुकार्य में पूरी तल्लीनता
के साथ लगे हुए हैं। पिछले साल मुज़फ़्फ़रनगर का ‘बहू-बेटी बचाओ आंदोलन’ और कुछ दिनों
पहले मेरठ का धर्मांतरण वाला क़िस्सा इसी मिथ्याप्रचार की अगली कड़ी है।
इससे पहले, कर्नाटक और
केरल लव जिहाद का प्रयोगशाला बना। 2010 में दक्षिण कर्नाटक में हिन्दू जनजागृति समिति ने यह
प्रचार शुरू किया कि प्रान्त में तीस हज़ार हिन्दू नवयुवतियों को लव जिहाद वालों ने
अपने प्यार-चक्कर में फाँसकर मुस्लिम बना लिया है। लगभग ऐसा ही प्रचार केरल में भी
शुरू किया गया था और केरल के उच्चन्यायालय ने बाक़ायदा इसकी जाँच के आदेश भी दिए; मगर पुलिस को ऐसे किसी
भी ‘जिहाद’ का किसी भी तरह का कोई सबूत तक नहीं मिला और अदालत को यह केस बंद करना पड़ा।
वहीं कर्नाटक पुलिस की जाँच से पता चला कि हिन्दू जनजागृति समिति ने जिस समयावधि
के दौरान तीस हज़ार हिन्दू लड़कियों के गुम होने का प्रचार किया है, वह सरासर ग़लत है। उस
समयावधि में ऐसी सिर्फ़ 404 लड़कियाँ गुम
हुई और उनमें से 332 को पुलिस ने
ढूँढ़ निकाला। पुलिस की जाँच से यह भी हक़ीक़त आशकार हुई कि इनमें से ज़्यादातर
मामलों में हिन्दू लड़कियाँ हिन्दू लड़कों से शादी करने के लिए घर से गयी थीं।
दूसरी तरफ़, मेरठ के एक मदरसे में पढ़ाने वाली युवती के धर्म परिवर्तन के आरोप भी ग़लत
साबित हुए, लड़की ने जो हलफ़नामा दाख़िल किया है उसमें उसने कहा है कि वह अपनी मर्ज़ी से
अपना धर्म बदला है।
ग़ौरतलब है कि लव जिहाद का मिथ्याप्रचार कोई नयी चीज़ नहीं है इसका
सिलसिला 1920 के दशक में जनसंघ और आरएसएस के आविर्भाव के काल से अलग-अलग
पेशबंदियों के तहत चल रहा था। 1924 में कानपुर में एक पुस्तिका प्रकाशित की गयी
जिसका शीर्षक था—‘हमारा भीषण ह्रास’। इस पुस्तक में यह बताया गया कि—“भारी संख्या में आर्य महिलाएं यवनों और मलेक्षों
(मुसलमानों) से निकाह कर रही हैं और गौभक्षकों को जन्म दे रही हैं। मुसलमानों की
जनसंख्या बढ़ा रही हैं।” 1928 में एक कविता प्रकाशित की गयी जिसे बाद में तत्कालीन
ब्रिटिश हुकूमत ने बैन कर दिया गया। इस कविता का शीर्षक था—‘चंद मुसलमानों
की हरकतें’, इस कविता की चंद लाइनें इस प्रकार हैं:
“तादाद बढ़ाने के
लिए चल चलायी
मुस्लिम बनाने के लिए स्कीम आई..
इक्कों को गली गाँव में लेकर घूमते हैं
पर्दे को डाल मुस्लिम औरत बैठाते हैं।”
लगभग इसी लाइन पर आज के आरएसएस के आनुषांगिक संगठन और हिन्दू रक्षक
समिति जैसे गिरोह काम करते हैं। महाराष्ट्र के धुले ज़िले के ये गिरोह उन
मोटरसाइकिल पर भी नज़र रखते हैं जिनपर लड़के के पीछे लड़की बैठी हो। ये लोग
मोटरसाइकिल का नंबर ले कर स्थानीय ट्रांसपोर्ट दफ़्तर से यह पता करते हैं कि
मोटरसाइकिल हिन्दू की है या मुस्लिम की, और अगर मोटरसाइकिल मुस्लिम की है तो उसके पीछे बैठी लड़की
हिन्दू ही होगी!
लव जिहाद अफ़वाहसाज़ी के उसी बड़े गेम प्लान का हिस्सा है जिसे
नरेन्द्र मोदी ने 2002 के गुजरात
दंगों के बाद वहाँ हुए चुनाव के दौरान कहा था– “हम (मतलब हिन्दू) दो
हमारे दो, वो (मतलब
मुस्लिम) पाँच उनके पचीस।” दरअस्ल इस गेमप्लान की
जड़ें इतिहास में पैवस्ता हैं। एक सदी पहले 1909 में पंजाब हिन्दू महासभा के सह-संस्थापक
यू॰एन॰ मुखर्जी ने ‘हिन्दू : ए डाईंग रेस’ नामक किताब
लिखी जिस में उन्होने ने जनसंख्या का नवमाल्थसवादी सिद्धान्त पेश किया था, जिसके अनुसार देश में
मुस्लिम लोग ज़्यादा बच्चे पैदा करके हिन्दुओं से अपनी जनसंख्या अधिक करने वाले
हैं और इस तरह बहुत जल्दी ही मुसलमान बहुसंखयक और हिन्दू अल्पसंखयक बन जाएंगे। मुसलमान
भारत पर क़ब्ज़ा कर लेंगे। मुसलमानों के बढ़ती जनसंख्या का यह बेसुरा और घिनौना राग
यू॰एन॰ मुखर्जी की उसी पुस्तक से निकला है। पिछले कई सालों से इन दक्षिण पंथियों
ने इसी राग फिर से अलापना शुरू कर दिया है, लेकिन अब वे इसे नए रंग में लपेट कर लाए
हैं। पहले संघी संगठन मुसलमानों द्वारा अपनी जनसंख्या बढ़ाने का हौव्वा ही खड़ा
करते थे, अब उन्होंने ने
इसमें लव-जिहाद का डर भी जोड़ दिया है।
लव जिहाद का मामला सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ़ मिथ्याप्रचार का ही
नहीं है बल्कि पूरे समाज में नारी-विरोधी पुरुषवादी सामन्ती सोच को बढ़ावा देने का
भी है। ऐसी मानसिकता न सिर्फ़ वयस्क युवक-युवतियों के अपने ज़िन्दगी के फैसले खुद
करने के अधिकार को नकारती है,
बल्कि
ये औरतों के बच्चा पैदा करने सम्बन्धी अधिकार को भी नहीं मानना चाहती। ऐसी सोच औरत
को मात्र बच्चा पैदा करने वाली ‘मशीन’ समझने की ही है जो पूरी तरह से पुरुष के अनुसार पुरुष की
मर्जी से बच्चे पैदा करे। इस सोच के अंतस में औरत या तो पुरुष, परिवार या धर्म की
इज़्ज़त से जुड़ी कोई ‘वस्तु’ है, या फिर भोगने की।
यह अकाट्य सत्य है कि बहुसंख्यक समुदाय (पढ़िये हिन्दू) जातीय, नस्लीय और लिंग के आधार
पर ग़ैरबराबरी वाले समाज बंटा हुआ है। इसके अपने आंतरिक अंतर्विरोध हैं। स्तरीकृत
समाजों में इन अंतर्विरोधों का होना अवश्यंभावी है। लव जिहाद दरअस्ल, बहुसंख्यक समाज के उपेक्षित, तिरस्कृत और
शोषित तब्क़े का ध्यान उनकी मूल समस्याओं से हटा कर इस झूठे डर का खौफ़ दिखा कर उनको
एक प्लेटफॉर्म पर लाने का हथकंडा है। पिछली लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता ने
संघ परिवार के हौसलों को और बुलंद कर दिया है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के 2017 के
चुनावों के मद्देनजर सांप्रदायिक शक्तियों का यह घिनौना खेल पूरे रफ़्तार से जारी
है। इसके लिए ज़रूरी है कि संघपरिवार के इस झूठ को बेनक़ाब किया जाए और गंगा जमुनी
तहज़ीब के उस पहलू को अंगीकार किया जाए जिसके बारे में नवाब वाजिद अली शाह ने कहा
था:
“हम इश्क़ के बन्दे
हैं, मज़हब से नहीं
वाक़िफ़
गर काबा हुआ तो
क्या,
बुतख़ाना हुआ तो क्या।”
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