यौम-ए-आज़ादी मनाने का अब अरमान नहीं,
क्योंके यह भगत-वो-गांधी का हिन्दोस्तान नही.
बापू ने मुल्क बनाया था ग़रीबों के लिए,
मगर ग़रीब का जीना यहाँ आसान नहीं.
शहर जलते रहे ये बांसुरी बजाते रहे,
इन शहंशाहों में शायद कोइ इंसान नहीं.
तुझे बचाने को मरना पड़ा तो हाज़िर हैं,
यह सच्चा इश्क़ है शाह का फरमान नहीं.
वतन की इज़्ज़त की मिल जुल के दुआएँ मांगें,
हमारा फ़र्ज़ है उस पर कोइ एहसान नहीं..
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