स्वस्थ और सुशिक्षित नागरिक ही किसी देश के विकास की ज़मानत होते हैं। अर्थशास्त्र की शब्दावली में इसे मानव पूंजी कहा जाता है। यूं तो उत्पादन के पांच साधन माने जाते हैं जिसमें श्रम एवं पूंजी दो महत्वपूर्ण सक्रिय साधन माने गए हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री थ्योडोर विलियम्स शुल्त्ज़ ने 1961 में पहली बार मानव पूंजी का तसव्वुर पेश किया। उन्होंने व्यक्ति की शिक्षा, प्रशिक्षण, कौशल उन्नयन आदि पर किए जाने वाले सभी व्यय किए जाने वाले धन को पूंजी निवेश बताया क्योंकि ये व्यय उसकी उत्पादकता, कार्यकुशलता तथा आमदनी में वृद्धि करते हैं।
मानव पूंजी की भूमिका के बारे में नोबल पुरस्कार से सम्मानित अमेरिका के ही एक
और विश्वविख्यात अर्थशास्त्री गैरी बेकर ने कहा था—“मानव पूंजी का आशय दक्षता,
शिक्षा, स्वास्थ्य और लोगों को प्रशिक्षण से है। यह पूंजी है क्योंकि
ये दक्षताएं या शिक्षा लंबे समय तक हमारा अभिन्न अंग बनी रहेंगी। उसी तरह जिस तरह कोई
मशीन, प्लांट या फैक्टरी
उत्पादन का हिस्सा बने रहते हैं।”
मतलब यह कि सैद्धांतिक रूप से पूंजी के दो प्रकार है। पहली वो जो मूर्तरूप में दिखाई
देती है—भौतिक पूंजी है। इस पूंजी का उत्पादन कार्य में प्रत्यक्ष प्रयोग होता है।
दूसरी, मानव पूंजी जो
मूर्तरूप से दिखाई नहीं देती, लेकिन जो उत्पादन की गुणवत्ता तथा मात्रा दोनों में वृद्धि करती
है। उसमें श्रमिक के श्रम कौशल के साथ-साथ, स्वरोजगार करने वाले व उद्यमी का उद्यमिता कौशल प्रतिभा भी शामिल
है।
विडम्बना यह कि, आर्थिक वृद्धि
चाहे जीतने लम्बे-लम्बे दावे किए जा रहे हों, भारत का
प्रदर्शन मानव व भौतिक पूंजी निर्माण के संदर्भ में संतोषजनक नहीं है। हाल ही में विश्व
आर्थिक फोरम (डबल्यूईएफ़) की जारी दो रिपोर्टों से यह बात साफ़ हो जाती है कि पिछले
एक साल के दौरान में पूंजी निर्माण में कमी आई है।
पहले बात करते हैं ‘वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षमता रिपोर्ट
2014-15’ की। इसमें भारत 148 देशों की दर्जाबंदी में 71वें
स्थान पर है। ध्यान रहे इस सूची में देश पिछले एक साल में 11 पायदान फिसल गया। डबल्यूईएफ़
इस सूचकांक के आकलन में बारह आयामों का प्रयोग करता है जो ‘प्रतिस्पर्धा
की बुनियाद’ के नाम से जाने जाते हैं। इसमें संस्था, अवसंरचना, समष्टि आर्थिक माहौल, स्वास्थ्य और प्राथमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा एवं
कौशल, श्रम बाज़ार की क्षमता, तकनीकी तत्परता
और नवोन्मेष आदि प्रमुख हैं।
अब बात करते हैं डबल्यूईएफ
की दूसरी रिपोर्ट की। यह ‘ह्यूमन कैपिटल रिपोर्ट 2015’ है, इसके अनुसार 124 देशों की
सूची में भारत मानव पूंजी सूचकांक में 57.62 अंक के साथ 100वें स्थान पर है। डबल्यूईएफ
द्वारा तैयार की गई मानव पूंजी रिपोर्ट के अनुसार भारत न केवल ब्रिक्स देशों—रूस,
चीन, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका—से नीचे है बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप
के उसके पड़ोसी देशों श्रीलंका, भूटान तथा बांग्लादेश से भी नीचे है।
अगर देश को दीर्घकालिक विकास के पथ पर ले जाना है तो इसके लिए स्वास्थ्य और शिक्षा
जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में पहल तो करनी ही होगी। सितमज़रीफ़ी है कि इस साल के
बजट आवंटन में इन क्षेत्रों को भारी अनदेखी हुई है। मसलन, स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण में क्रमशः 23 और 16 प्रतिशत की कटौती की गयी। जबकि, अगर मानव पूंजी का
निर्माण करना है तो शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को और ज़्यादा मजबूत और ज़िम्मेदार
बनाना होगा। और यही ऐतिहासिक तौर पर यह स्वयंसिद्ध तरीका रहा है।