अभी ख़त-ए-इफ़्लास (पावर्टी लाईन) के सतह की अज़-सरे-नौ तारीफ़ करने पर मंसूबाबंदी कमीशन (प्लानिंग कमीशन) और सरकार की लै-दै और किरकिरी हो ही रही थी कि इंटरनेश्नल फ़ूड पॉलिसी एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट (इफ़्प्री) की हालिया जारी करदा रिपोर्ट 'ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) 2011', नाक़ाबू अफ़्लास-ओ-भूख फैलाव पर, एक बार फिर, सरकार की नाकरदगी और नाकामयाबी को उजागर करती है.
हालिया जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक़ इंडिया 23.7 के जीएचआई स्कोर के साथ ओवरआल रैंकिंग में अपने जनूबी एशियाई पड़ोसियों-पाकिस्तान, श्रीलंका और चीन से नीचे है. मुल्क की ख़ुराकी ज़मानत की सूरतेहाल को देखते ही इफ़्प्री ने इसे (23.7 के स्कोर को) "अलार्मिंग" (ख़तरनाक) के ज़ुमुरे में रखा है. दुनिया के बदतरीन ख़ुराकी ज़मानत वाले 81 मुमालिक में इसकी 67 वीं पोज़िशन है. इसका मतलब यह है कि सिर्फ़ दुनिया में14 ही मुल्क ऐसे हैं जिनके लोगों की गिज़ाई हैसियत (न्यूट्रीशनल लेविल) हम से बदतर है.
भूख की पैमाईश के लिए माहीरीन-ए-इक़तसादियात (एकोनोमिस्ट्स) मुख्तलिफ़ इंडिकेटर का इस्तेमाल करते हैं. और चूँकि भूख को मुख्तलिफ़ नुक़त-ए-नज़र और ज़ावियों से देखा जा सकता है चुनांचे इफ़्प्री ने भूख की कसीर-उल-इबाद फ़ितरत को ध्यान में रखते हुए एक ऐसे इंडेक्स की तश्कील की जो भूख के ज़्यादा से ज़्यादा डाईमेंशंस की अक़क़ासी कर सके. इसके लिए इसने जीएचआई (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) का तस्ववुर पेश किया. यह इंडेक्स तीन इंडिकेटर—कम गिज़ाईयत (अंडरनरिश्मेंट; बच्चों का कमवज़न; और बच्चों के मौत की शरह—को बराबर वज़न देते हुए यकजा करता है.
पहला इंडिकेटर, अंडरनरिश्मेंट का है जो जो नाकाफ़ी कैलोरी पर इक्तिफ़ा कर रहे लोगों की सतह बताता है इसकी पैमाइश गिज़ा की कमी से दो-चार हो रहे लोगों का पूरी आबादी में फ़ीसदी तनासुब (परसेंटेज) निकाल कर की जाती है. इससे मुताल्लिक़ डेटा और दीगर जानकारी इदारा बराए ख़ुराक-ओ-ज़रा'अत (एफ़एओ) मुहय्या करता है.
दूसरा इंडिकेटर, बच्चों को मिलने वाली कम और नाकाफ़ी गिज़ाईयत की अक्क़ासी करता है. और इसकी पैमाइश, पांच साल से कम, कम-वज़न (बशमूल वेस्टिंग—उम्र के लिहाज़ से कम वज़न, स्टटिंग—उम्र के लिहाज़ से कम लम्बाई या दोनों) बच्चों का तनासुब निकाल कर की जाती है. और इसका डाटा बेस आलमी इदारा-ए-सेहत (डब्ल्यूएचओ), इक़वाम-ए-मोत्ताहेदा का फंड बराए अत्फ़ाल (यूनीसेफ) और मुख्तलिफ़ सेहत-ओ-शुमारियत आबादी के सर्वे पर मुश्तमिल है.
और तीसरा इंडिकेटर, नाकाफ़ी गिज़ा और नासालिम माहौल की मोहलिक हमकारी की अक्क़ासी करता है. और इसकी पैमाइश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों का शरह-ए-अमवात (U-5 मोर्टेलिटी रेट) का इस्तेमात करते हैं. इससे वाबस्ता तमाम जानकारियां व डेटा भी यूनीसेफ मुहय्या कराता है.
भूख की यह कसीर-उल-इबाद (मल्टीडाइमेन्शनल) वज़ाहत, कई मामलों में, कई फ़ाइदे फ़राहम करता है. मसलन, यह न सिर्फ़ पूरी आबादी को ध्यान में रखता है बल्कि जिस्मानी तौर से आसेब पज़ीर जमात—बच्चों, जिनको गिज़ा की कमी की वजह से ज़्यादा बीमारी का ख़तरा, ख़राब जिस्मानी-ओ-दिमाग़ी तरक्क़ी और मौत का ख़तरा लाहिक़ होता है—को भी ध्यान में रखता है. इसके अलावा यह इन आज़ाद इक्दामात इंडिकेटर को मिलाकर पैमाशी ग़लती के असरात को भी कम कर देता है. जीएचआई मुल्कों को 100 पॉइंट के पैमाने पर रैंक करता है. सिफ़र (0) सबसे अच्छा स्कोर है जिसका मतलब है भूख कि ग़ैर-मौजूदगी, और सौ (100) सबसे ख़राब स्कोर है जिसका मतलब है सिर्फ़ भूख ही भूख का सामराज. हालांकि, हक़ीक़ी अम्ल में ये दोनों इन्तहा नहीं पाए जाते.
इफ़्प्री मुल्कों को, उनके जीएचआई स्कोर के मुताबिक़ पांच ज़ुमुरों में तक़सीम करता है. पहले ज़ुमुरे में वो मुमालिक आते हैं जिनका जीएचआई स्कोर 4.9 से कम ("लो") है. इसको कम सतह के स्कोर से मंसूब करते हैं. मतलब यह कि, इस ज़ुमुरे में आने वाले मुल्कों में भूख का फैलाव कम है और इनकी गिज़ाई ज़मानत काफ़ी अच्छी है. दूसरे ज़ुमुरे में आने वाले मुल्कों का जीएचआई स्कोर 5 से 9.9 के बीच है. जीएचआई की यह सतह, इफ़्प्री के मुताबिक़, मो'तदिल ("मोडरेट") है. इसका मतलब ये हुआ कि, इस ज़ुमुरे में आने वाले वो मुमालिक हैं जहाँ भूख का तसल्लुत अभी कुछ कम है. मिसाल के तौर पर, मारीशस, चीन, त्रिनिदाद और टोबैगो और किरगिज़तान वग़ैरह. तीसरा ज़ुमुरा, इफ़्प्री के लफ़्ज़ों में, संगीन ("सीरियस") है. इसमे आने वाले वो मुमालिक हैं जिनका जीएचआई स्कोर 10 से 19.9 के बीच है. ये वो मुल्क हैं जहाँ भूख का तसल्लुत अब एक संगीन मोड़ ले चुका है. मसलन, विएतनाम, बोलिविया, बोत्स्वाना, युगांडा और केन्या वग़ैरह. चौथा दायरा उन मुल्कों का है जिनके जीएचआई स्कोर 20 से 29.9 के बीच हैं. इस ज़ुमुरे को इफ़्प्री, ख़तरनाक ("अलार्मिंग") नाम देता है. ये वो मुमालिक हैं जहाँ भूख एक मोहलिक परेशानी बन गयी है और गिज़ाई ज़मानत निहायत ही बदतर हालत में है. इंडिया, चाड, हैती, बुरुंडी, और अंगोला जैसे मुमालिक इस ज़ुमरे में जगह पाते हैं. और, आख़िरी, पांचवा ज़ुमुरा उन मुल्कों की नुमाइंदगी करता है जिनके जीएचआई स्कोर 30 से ज़्यादा हैं. इस ज़ुमुरे की, बहुत ही ख़तरनाक ("इक्सट्रीमली अलार्मिंग") के नाम से दर्जाबंदी की गयी है. ये वो मुमालिक हैं जहां भूख के हालात बहुत ही ख़तरनाक हैं या यूँ कहें की भूख का फैलाव क़ाबू से बाहर हो गया है. इस ज़ुमुरे में आनेवाला सिर्फ़ एक ही मुल्क है जोकि डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कॉम्बो है.
इस साल यानि के 2011 में इंडिया का जीएचआई स्कोर 24.7 है जब कि ठीक दस बरस क़ब्ल यह स्कोर 24.1 था, मतलब साफ़ है कि इन दस सालों में भूख का फैलाव कम होने के बजाय, एक हद तक वसीअ'तर होता गया है. दूसरी तरफ़ सरकारी दावे कुछ और ही राग अलाप रहे हैं. इनके दावों के मुताबिक़ मुल्क ने भूख के मसअले को हल करने में क़ाबिल-ए-तवज्जेह तरक्क़ी की है. एनएसएसओ के डेटा इस बात को दिखा रहे हैं कि अहलेख़ाना के भूख की सतह में काफ़ी कमी आई है, जो 1983 में 17.3 से घट कर 2004-05 में 2.5 के सतह पर पहुँच गया. जबकि हक़ीक़त कुछ और ही है. इफ़्प्री और सरकारी तख्मीने में तनाक़िज़-ओ-गड़बड़ी की दो वजूहातें हैं. पहली यह कि, एनएसएसओ से भूख की जो शरह निकाली जा रही है वह अहलेख़ाना (हाउस-होल्ड) के सतह पर है जबकि इफ़्प्री अपने जीएचआई में भूख की शरह को इन्फ़रादी (इन्डिवीजुअल) सतह पर कैल्क्यूलेट करता है. दूसरी यह कि, एनएसएसओ भूख से मुतअल्लिक जो डेटा इकठ्ठा करता है वो ख़ुद-ख़याल (सेल्फ-परसेप्शन) की बिना पर होता है. और जो भी कोई दिन भर में सिर्फ़ दो वक़्त खाना पा रहा है—बिना गिज़ाई अहमियत की परवाह किये—वह भूख के शिकंजे से बाहर समझा जाएगा. और वह लोग जिनको कभी मुतानासिब गिज़ा ही न मिली हो वह अपनी गिज़ा और भूख का अंदाज़ा कैसे लगा सकते हैं! साइंटिफिक तौर पर वह भूख का शिकार होते हुए भी वे लोग इसको पहचान नहीं पाते, या अमर्त्य सेन के लफ़्ज़ों में "परसेप्शन बाएस" का शिकार होते हैं. इसलिए एनएसएसओ के ज़रिये भूख की जो शरह मिलती है वह दस्तेकम गिरफ़्त (अंडर-एस्टिमेटेड) होती है.
यूँ तो, इफ़्प्री, भूख के फैलाव और ख़ुराक की कमी और गिज़ाई अदम तहफ्फुज़ की वजह बढ़ती हुई (और भरी उतार चढ़ाव वाली भी) क़ीमतों में तलाश करता है. गोकि, इसमें कोई शक नहीं कि गिज़ाई क़ीमतों की यह वोलैटीलिटी खुराक के हुसूल में रुकावट है; ताहम, यह बात भी वाज़ह है कि आबादी की हक़ीकी ख़ुराकी ज़मानत के लिए एक वसी'अ इक्दामात की ज़रुरत पड़ती है. ये सारे या इनमे से बेशतर इक्दामात अवामी मुदाखिलत से मुंसलिक होते हैं. खुराक की मुनासिब मिक़दार में फ़राहमी के लिए ज़राई पैदावारी में इज़ाफ़े की ज़रुरत होती है, फ़सल के पैटर्न में मुम्किनाह तब्दीली, और यक़ीनी तौर से खेती की मुसलसल नातीजाखेज़ी, और ये सब मक़ामी और क़ौमी दोनों सतहों पर ज़रूरी है. साथ ही, खुराक पर सभी लोगों की रसाई को यक़ीनी बनाने लिए ज़रूरी है कि लोगों के पास क़ूवत-ए-ख़रीददारी हो, इसका मतलब है रोज़गार, उजरत और ज़रिया मआश के मसले अहम हैं. यह बात भी क़ाबिले ग़ौर है कि समाजी इम्तियाज़ात और इख़राज का भी ख़ुराक की रसाई और ज़रिया मआश दोनों का तअय्युन करने में काफ़ी अहम किरदार है. चुनांचे ज़रुरत इस बात की भी है कि समाजी सेट-अप को भी ध्यान में रखा जाए. और जहाँ तक नाक़िस गिज़ाईयत (मॉलनरिश्मेंट) का मसअला है, तो इसका गिज़ाई नकमयाबी के साथ साथ ख़राब सफाई के इंतज़ामात, और दीगर नासालिम अमलियात से काफ़ी गहरा इर्ताबात है; इसीलिए साफ़ पीने के पानी की फ़राहमी, सफाई और दूसरी बुनियादी सहूलात तक रसाई के साथ ही साथ सही और मतलूबा खाने के आदात-ओ-अतवार के बारे इल्म भी ज़रूरी है. और ये सब इक्दामात, एक हद तक, सरकारी और अवामी मुदाखिलत के बिना मुमकिन नहीं है. तो ज़रुरत इस बात की है कि सरकार एक मज़बूत क़ूवत-ए-इरादी और ज़िम्मेदाराना रवैये से खूर्द और सेहत-ए आम्मा की तक आम लोगों तक रसाई को यक़ीनी बनाए क़ब्ल इसके कि हालत और बेक़ाबू होजाएँ.